“गैंगस्टर की मां बनने की जिद – जेल, IVF और एक मिसाल बनता कोर्ट का फैसला”

“वो एक कुख्यात गैंगस्टर है…
तिहाड़ जेल में बंद है…
लेकिन अब वो बनने वाला है – पिता।
और उसकी पत्नी – हरियाणा की चर्चित गैंगस्टर अनुराधा चौधरी उर्फ मैडम मिंज –
बनने वाली है मां।
और ये सब हुआ कोर्ट के आदेश पर – कानून की छाया में, मानव अधिकारों की रोशनी में।” कहानी की शुरुआत – अपराध से IVF तक हरियाणा की चर्चित गैंगस्टर अनुराधा चौधरी, जिसे लोग मैडम मिंज के नाम से जानते हैं,
जल्द ही मां बनने वाली हैं।
वो गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में IVF प्रक्रिया के जरिए गर्भवती हुई हैं।
लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं –
उसके पति, गैंगस्टर काला जठेड़ी, जो कि तिहाड़ जेल में बंद है,
उसका स्पर्म सैंपल कोर्ट के आदेश पर जेल परिसर में लिया गया। पैरोल से IVF तक का रास्ता काला जठेड़ी ने पहले अदालत से 6 घंटे की पैरोल मांगी थी,
ताकि वो अपनी पत्नी के साथ रहकर बच्चा पैदा करने की प्रक्रिया में शामिल हो सके।
लेकिन कोर्ट ने कहा – नहीं।
फिर अदालत ने एक अलग रास्ता निकाला –
IVF प्रक्रिया की अनुमति दी और कहा कि
‘वंशवृद्धि की इच्छा एक मौलिक पारिवारिक अधिकार है।’
कोर्ट ने आदेश दिया कि स्पर्म कलेक्शन
तिहाड़ जेल परिसर में सुबह 6 से 7 बजे के बीच,
डॉक्टरों की निगरानी में, गोपनीयता और मेडिकल प्रोटोकॉल के तहत हो। 14 जून को डॉक्टरों की टीम तिहाड़ जेल पहुंची।
सैंपल लिया गया और उसे एक घंटे के भीतर गुरुग्राम के IVF सेंटर पहुंचाया गया।
यह प्रक्रिया पूरी तरह AIIMS और RML अस्पताल की राय के आधार पर की गई। अदालत ने स्पष्ट किया कि
‘वंशवृद्धि की इच्छा को नकारा नहीं जा सकता,
यह इंसानी हक है, भले ही कोई आरोपी हो।’
कोर्ट के इस फैसले ने
भारत में जेल में बंद कैदियों के मानवाधिकारों की दिशा में एक नई मिसाल पेश की है। काला जठेड़ी – दिल्ली-एनसीआर का सबसे चर्चित गैंगस्टर।
उस पर रंगदारी, अपहरण, हत्या, गैंगस्टर एक्ट समेत दर्जनों संगीन मुकदमे हैं।
वो लंबे समय से तिहाड़ जेल में बंद है।
उसकी पत्नी अनुराधा चौधरी की भी आपराधिक पृष्ठभूमि है।
वो पहले कुख्यात गैंगस्टर तिल्लू ताजपुरिया से जुड़ी हुई थी।
बाद में काला जठेड़ी से नजदीकियां बढ़ीं और
कोर्ट की अनुमति और सुरक्षा में दोनों ने शादी कर ली। सोचने लायक बात – इंसान, अपराधी या सिर्फ नागरिक? “क्या एक अपराधी भी
पिता बनने की इच्छा रख सकता है?”
“क्या जेल की सलाखें जीवन के अधिकारों पर भी ताले लगा सकती हैं?”
अदालत ने इन सवालों का जवाब दिया –
‘नहीं।’
और इस फैसले ने एक बार फिर साबित किया –
‘अपराधी का हक छीना जा सकता है,
लेकिन इंसान के अधिकार नहीं।’
“यह सिर्फ IVF की कहानी नहीं है…
यह एक ऐसे समाज की कहानी है जो अपराधियों के भीतर भी इंसान तलाशने की कोशिश करता है।”
“एक महिला जो जेल से बाहर है, एक पुरुष जो जेल के भीतर है,
लेकिन दोनों की इच्छा – एक नई ज़िंदगी को जन्म देने की।”
“शायद यही कानून की खूबी है –
वह सिर्फ सजा नहीं देता,
इंसान के भीतर छिपे अधिकारों को भी पहचानता है।”